hindisamay head


अ+ अ-

कविता

उसे देखते हुए देखा

शिरीष कुमार मौर्य


उसे देखते हुए देखा
कि वह जितनी सुंदर है उतनी दिखती नहीं है

उसे देखते हुए देखा
कि उम्र दरअसल धोखा है
चेहरे का हाथों से अधिक साँवला होना भी
एक सरल द्विघातीय समीकरण है
देह का

उसे देखते हुए देखा
कि बोलना भी दृश्‍य है और उस दृश्‍य के कुछ परिदृश्‍य भी हैं

उसे देखते हुए देखा
कि मेज़ पर भरपूर फड़फड़ा रही किताब ही किताब नहीं है
भारी गद्दे के नीचे सिरहाने छुपाई गई डायरी भी किताब है

उसे देखते हुए देखा
कि जो प्रकाशित है वह अँधेरा भी हो सकता है
और जो अँधेरा है उसके भीतर हो सकता है
उजाला
लपकती हुई लौ सरीखा

उसे देखते हुए देखा
कि वह बहुत दूर बैठी है विगत और आगत में कहीं
बहुत सारे लोग हैं संगत में
मैं नहीं

उसे देखते हुए देखा
कि बीमार का हाल अच्‍छा है
अब भी
उसके देखे से आ जाती है मुँह पर रौनक
ढाढ़स बंधाता
बल्‍लीमारां के महल्‍ले से कहता है कोई
ये साल अच्‍छा है
 


End Text   End Text    End Text

हिंदी समय में शिरीष कुमार मौर्य की रचनाएँ